आहिस्ता चल ज़िंदगी

गृहस्थी

अपनी गृहस्थी को कुछ इस तरह बचा लियाकभी आँखें दिखा दी कभी सर झुका लिया आपसी नाराज़गी को लम्बा चलने ही न दियाकभी वो हंस पड़े कभी हमने मुस्करा दिया रूठ कर बैठे रहने से घर भला कहाँ चलते हैंकभी उन्होंने गुदगुदा दिया कभी मैंने मना लिया खाने पीने पे विवाद कभी होने ही न … Continue reading गृहस्थी

मै से मै तक की ये दूरी

मै से मै तक की ये दूरी वादों क़समों की मजबूरी , अपनो से प्रतिस्पर्धा भी है ज़रूरी सत्यापन से डरने की मेरी मजबूरी , माया है ये कि मोह है मै से मै तक की ये दूरी । “मै” से अहंकार का जन्म होना फिर इस दौड़ में शामिल होना दुख पैदा कर दूसरों … Continue reading मै से मै तक की ये दूरी

पाय गयो रघुवीर

मन शीतल जल भया पाय गयो रघुवीर, मूढ़ बनत फिरता रहा जब जपा नाम रघुवीर, दस कंधर ज्ञानी हुआ खुद चले आए रघुवीर, दस सिर जानत अवगुण थे मिटावे पीढ रघुवीर, परम सत्य को जानिए अंतर्मन जब होए अधीर , अवगुण जान स्वयं के चरण शरण जाओ रघुवीर।

चिन्तन चित्त को चाहिए

चिन्तन चित्त को चाहिए तनको चाही नीर, मन को भौतिक सुख की इच्छा आत्मा बने फ़क़ीर । क़हत पुलसत्य सुनो भाई साधों बन रहे बड़े बड़े फ़क़ीर , भजन पूजन से कछु मिले नहीं ना हो भाव फ़क़ीर । खुदा कहो या शिव होते वही क़रीब , जो जन सेवा करे बनावे नाहीं लकीर ।

रहमत खुदा की यूँही हुआ नहीं करती

जज़्बातों में ना हो ईमानदारी तो रहमत खुदा की हुआ नहीं करती , कितने भी जतन कितने भी क़त्ल कर लो बेमानी जज़्बातों से मोहब्बत जवान हुआ नहीं करती। इस जमाने के चाहे सरताज बन जाओ बिना खुदा की इबादत के जन्नत नसीब हुआ नहीं करती । इस हुस्न पर कितना भी लूटा दो हीरे … Continue reading रहमत खुदा की यूँही हुआ नहीं करती