रहमत खुदा की यूँही हुआ नहीं करती

जज़्बातों में ना हो ईमानदारी

तो रहमत खुदा की हुआ नहीं करती ,

कितने भी जतन कितने भी क़त्ल कर लो

बेमानी जज़्बातों से मोहब्बत जवान हुआ नहीं करती।

इस जमाने के चाहे सरताज बन जाओ

बिना खुदा की इबादत के जन्नत नसीब हुआ नहीं करती ।

इस हुस्न पर कितना भी लूटा दो हीरे ज़ेवरात

बिना ईमानदारी के मोहब्बत में तब्दील हुआ नहीं करती।

एक जमाना था वो भी

जब यारों के यार हुआ करते थे ,

अब देखो ढूँढने पर भी

ऐसी मिसालें मिला नहीं करतीं ।

चले यूँही ख़याली पुलाव पकाए सब ही

बिना आग जलाए बिरयानी बना नहीं करती।

कुछ इंतज़ार करते बैठे हैं

कुछ दौड़ते फिरते हैं यूँही ,

ना हो दिल में खुदा की मोहब्बत तो

चेहरे पर मुस्कान मिला नहीं करती ।

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