मै से मै तक की ये दूरी
वादों क़समों की मजबूरी ,
अपनो से
प्रतिस्पर्धा भी है ज़रूरी
सत्यापन से
डरने की मेरी मजबूरी ,
माया है ये
कि मोह है
मै से मै तक की ये दूरी ।
“मै” से
अहंकार का जन्म होना
फिर इस दौड़ में
शामिल होना
दुख पैदा कर दूसरों के लिए
खुश होना
फिर जब लौट आएँ
करमों के प्रारब्ध
अपनी करनी को
सही साबित करना ,
मै से मै तक की है यही दूरी।
“मै परमात्मा हूँ “ तक की ये दूरी
समझ आ जाए तो दो पल की दूरी
फँसे रहो तो
जनम जन्मान्तर की मजबूरी ,
भाव स्वभाव को साधना
है सिर्फ़ ज़रूरी
खतम हो जाती है
मै से मै तक की ये दूरी ।
– “पुलस्तय”