रुकना चलना

रुकना चलना, जीवन का सुख।
लेना- देना अनुभव निज सुख।


नित परिवर्तन प्रकृति भाव है।
परवश जीवन कभी नहीं सुख।


मेघों का अपना जीवन है।
उठना, चलना और बरसना ।


पर वे परवश, नहीं बरसते।
जब तक शीतलता से उन्मुख।


जल जीवन आसान नहीं है,
नहीं सरल हैं उनके रस्ते।


पर्वत से गिर मैदानों में,
चलते रहते बेकल, बेसुध।


जब वे सागर से मिल लेते,
तब तक कहां चैन औ सुधबुध।


पेड़ निरन्तर बढ़ते रहते ,
पल पल नित नवीन सा अद्भुत।


पत्ते कोपल, किस लय पुष्पित,
फल पाकर झुकते बिन गर्वित।


पर सबके सब में ये गुण है,
नहीं जिए वे अपने खातिर।


उनका जीवन एक उदाहरण,
सब कुछ देना बिन हो गर्वित।

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