उन्हें इल्म नहीं

दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी

जो किया करते हैं

उन्हें इल्म नहीं

उस जज़्बात का

जिससे सीने

ठंडे हुआ करते हैं ,

कुछ बर्दाश्त करने की आदत

जो डाली होती पुलस्त्य

जाना होता की

अपनो की ख़्वाहिशों से ज़्यादा

उनकी मुस्कुराहट के मायने हुआ करते है ।

तुम बैठ जाओ बस

इस खुदा के कमाल देखा करो

उसकी रहमत की बरसात

सभी पर बराबर हुआ करती है ।

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