प्रेम का सागर लिखूं!
या चेतना का चिंतन लिखूं!
प्रीति की गागर लिखूं,
या आत्मा का मंथन लिखूं!
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित,
चाहे जितना लिखूं….
जेल में जन्मा लिखूं ,
या गोकुल का पलना लिखूं।
देवकी की गोदी लिखूं ,
या यशोदा का ललना लिखूं ।।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं….
देवकी का नंदन लिखूं,
या यशोदा का लाल लिखूं।
वासुदेव का तनय लिखूं,
या नंद का गोपाल लिखूं।।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं….
आत्मतत्व चिंतन लिखूं,
या प्राणेश्वर परमात्मा लिखूं।
स्थिर चित्त योगी लिखूं,
या यताति सर्वात्मा लिखूं।।
रहोगे तुम फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं…..