बस शून्य सा सब कुछ हो रहा

कुछ काला कुछ उज्ला

कुछ पीछे कुछ आगे

समय परिवर्तन हो रहा ।

स्थिर्ता बुद्धि और विवेक

ना तुलना है ना परिकल्पना

बस शून्य सा सब कुछ हो रहा ।

ना पराजय का भय

ना विजय का उद्घोष

बस शून्य सा सब कुछ हो रहा ।

चित्त स्थिर शंका शून्य

और काली की मुस्कुराहट

बस शून्य सा सब कुछ हो रहा ।

विश्वास अडिग मन चंचल

हृदय तीव्र पटल क्षीण

बस शून्य सा सब कुछ हो रहा ।

घर रिश्ते और व्यवसाय

समुद्र की लहरों से

बस सब कुछ भौतिक खो रहा ।

रोना गाना या हँसना

समभाव शांति और मौन

बस यूँही सब कुछ हो रहा ।

रात्रि सूर्य-उदय अथवा संधि

भोग-विलास वैराग्य या विरक्ति

समानांतर समय सा हो रहा ।

समझ-बूझ विवेक अथवा ज्ञान

एकाग्रता शांति और ध्यान

रेत लहरों में जैसे खो रहा ।

सुख दुःख जीवन और बियाबान

महल जंगल एक समान

बस शून्य सा सब कुछ हो रहा ।

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