बयान करें तो किससे

लम्हों में बितती ज़िंदगी,

कुछ हाल ए दिल बता नहीं पाती,

सुकून में पल जो गुज़ारे थे,

खयाल ए महफ़िल दिखा नहीं पाती।

बयान करें तो किससे,

ये आँखें क्यों नम हो जाया करती हैं,

बेक़ाबू हालात से लड़ते हुए कह देते है,

नज़रें दूर तलक दिखा नहीं पातीं।

तुम ही कहो ये सय्याद कौन है,

जो हमारे सुकून का क़त्ल करता है,

तड़पते फड़फड़ाते से पंख मेरे,

हवाओं को देख ख़ुद पर इख्तियार नहीं पातीं ।

इल्ज़ाम बहुत लगे ज़िंदगी में,

ख़ुद को सम्भाल खड़े हो जाते हैं,

यूँ तो जान सी ख़त्म हुई महसूस होती है,

तुम्हारे पास होने से बेख़ुदी पास नहीं आती।

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तुम्हारे पास होने से बेख़ुदी पास नहीं आती।

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