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पांच कर्मो में फंसा

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राम नाम की धुन से हो गयो उद्धार

चरण वन्दना कर तर गयो, दूर भयो अन्धकार।

काम मलत्याग गमन वाच एवम् व्यापार 

पांच कर्मो में फंसा,  मै भटक रहा निराधार। 

निराकार का भजन कर,  ज्ञानेद्रिंयाँ हुई हैं शांत

परमानन्द की ओर अग्रसर हो रहा मै प्रशांत। 

चित्त चिन्तन चिता की माया रहा मै छोड़ 

हुआ आत्मबोध,  मिलें हैं मुझे परम पुरूष श्री हरी रणछोड़। 

 

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