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देखी तोरी सूरत जबहुं

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देखी तोरी सूरत जबहुं

आनंदित मन होई तबहुं,

मुख मंडल मुस्कान जब देखाहुं

चित्त परिचित होई है तबहुं।


मन चंचल चित्त मधुबन वन भटकयो

बंसी सुन तिहारी मृग नाचत जब दिख्यो,

राधा संग तुम तब रास रचाए

सबहुं ओर नंदन वन में मैं भटकयो।


श्याम तुम चित्त कर हो ठहरे

सुध बुध खोए मैं मोह में भटकयो,

अरज तिहारी पड़ा चरनन में तोर

अब बांह पकड़ मोरी उठाय लिजो।

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