बन्ध रहे पुराने बन्धन
रीती रिवाजों के ये सभी मनोरंजन
किया ये, न किया वो, तू कैसा है बदजात
कर रहा ठीक है, पर बड़ो की नहीं मानी बात
कैसे करें पार,
ये है अज्ञानता और ढकोसलों की दीवार।
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पुराने परिवारों के हालात अलग थे
सभी लोगों से मुलाकात अलग थे
छूट जाता अगर एक का भी किरोबार
परिवार पकड़ता हाथ सरे बाजार
कैसे करें पार,
ये है अज्ञानता और ढकोसलों की दिवार।
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आजकल के हालात अलग हैं
परिवारों में सम्बन्ध और बात अलग है
भाई भी अपने मुंह छुपा लिया करते हैं
माँ बाप भी उन्हे ही गले लगा लिया करते हैं
कैसे करें पार,
ये है अज्ञानता और ढकोसलों की दिवार।
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जानकर अनजान बना करते हैं
कमजोर हुए हो तो, सब मौका लिया करते हैं
चलो तुम चाहे ठीक पथ पर, सयमं रख लेना
चाहे पसीने चाहे लहू से हो लथपथ, धर्म रख लेना
कैसे करें पार,
ये है अज्ञानता और ढकोसलों की दिवार।
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ज्ञान, अज्ञान, प्रकाश या अंधकार
चाहे हो भजन चाहे घुंघरू की हो झंकार,
कर्तव्य कहने को पूरा हो मगर
चाहे ना हो उसमें कोई वास्तविक डगर,
कैसे करें पार,
ये है अज्ञानता और ढकोसलों की दिवार।
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बताये मुझे भी कोई
समझाए उन्हे भी कोई
शहर है जंगल आज,
खा रहे एक दूसरे को बिना किसी लाज,
कैसे करें पार,
ये है अज्ञानता और ढकोसलों की दिवार।
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जी रहे खड़े सम्मुख तुम्हारे
मुस्कराये हमेशा, चाहे जग से हारे
ज्ञानचक्षू जरा खोल लीजिए
जरा इधर भी प्यार से देख लीजिए,
होए जरा सवेरा हमारे भी जग में
तर जाएं हम ये अज्ञानता और ढकोसले की दीवार।