देखा है मैने सब, उत्त्पती से विनाश तक मै ही आदी, अन्त भी मै हूँ, रचनाकार मै भोग और भोगी भी मै हूँ, सरल स्वभाव मै भाव का अर्थ भी मै हूँ, मीठे फल सुंदर संसार मै दुख अपार भी मै हूँ, प्रभु का आशिर्वाद मै उसे ही भूला इन्सान भी मै हूँ, अपने ही … Continue reading मैं हूँ
Month: August 2017
मित्र! ओ मित्र
इच्छाओं से उत्पन्न हो हंसी की रचना करते हो तुम, मेरे दृष्टिकोण को जान कर सार्थक करते हो तुम, मेरी इचछाओं के अनूकूल रचनात्मक हो दिखते हो तुम| ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण हो ढूंढता फिरा चहुंओर वो हंसी के गोलगपपे हो तुम, बैठे बाध्य मेरी सोच के अनुरूप मुझे संभाले, मेरा ढांढस बांधे मित्र हो … Continue reading मित्र! ओ मित्र