क्यों न होगी

चन्द लम्हों को अपने समेट, बयां जो कर बैठे हो नाम उसका, तुम्हारी वाहवाही क्यों न होगी, 

दिल चीर कर जख्मों को दिखा जो दोगे अगर, तुम्हारी चाहत क्यों न होगी।

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दास्तां लिखा नहीं करते, हाल ए दिल तो यूंही जाहिर हुआ करते हैं

गैरों में रह कर भी, तुम संग दिल न बने, तो राह ए जिगर खुली क्यों न होगी।

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सनम बेवफा हुआ नहीं  करते, हो वक्त बेरहम  तो इत्तफाक नहीं करते,

ये जहां अब भी मुकददस जगह हैं दोस्त यूँ तो, तू पैसा फेंककर देख तेरी दुआ क्यों न होगी।

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इजहार कर इन्सान से हाल ए दिल यूंही , देखें तुझे जलालत क्यों न होगी,

इश्क हैं अगर खुदा से तुझे, दास्तां भी फलसफां होगी, देखें फिर तेरी भी इबादत क्यों न होगी। 

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