अभी बाकी है

ज़िस्म कट गया तो क्या हुआ,
रूह अभी बाकी है
तुम्हारी इंसानियत मर गयी तो क्या,
हमारी अभी बाकी है
छाया दूंगा , पानी दूंगा
गर मैं मुक्कमल खड़ा रहूंगा
शाख ओ दरख़्त न रहे सही
पर फसल अभी भी बाकी है।

काट डाले तुमने अपने रिश्ते,
मेरे जंगल अभी बाकी हैं
खुदा की नेमत पाने में नहीं,
फल और छाया देना अब भी बाकी है
कुछ दरख्तों के काट जाने से
जंगल खत्म नहीं होते
तुम्हारे जंगलीपन की नुमाइश
अब भी बाकी है।

क्या हुआ गर तोड़ दिया दिल तुमने माँ का,
उसकी जान में जान अभी बाकी है
जज्बातों के सैलाब में बह कर,
तुम्हारा रोना अभी बाकी है
खुदा को कोसने से जो नहीं झिझकते,
उन्हे दिदारे यार ये जब होगा
उस पल में खुदी को देख कर रोना,
तुम्हारा अभी बाकी है।

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